जन्म से पहले भी दस्तक दे सकती है पार्किंसन की बीमारी

जन्म से पहले भी दस्तक दे सकती है पार्किंसन की बीमारी

सेहतराग टीम

एक नए अध्ययन के मुताबिक पार्किसन बीमारी की शुरुआत जन्म से पहले ही हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर यह बीमारी उम्रदराज लोगों को होती है, लेकिन जो मरीज 50 साल की उम्र से पहले ही इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं, उनकी मस्तिष्क की कोशिकाएं संभवता जन्म के समय ही खराब होती हैं।

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कैलिफोर्निया के सेडार्स-सिनाई मेडिकल सेंटर में हुए इस अध्ययन में बताया गया है कि मस्तिष्क की खराब कोशिकाओं के साथ पैदा हुए लोगों में दशकों तक इसकी पहचान नहीं हो पाती है इसलिए, कम उम्र में ही उनकी हालत ज्यादा खराब होने लगती है। अध्ययन के सह-लेखक मिशेल तगलिएटी ने बताया कि कम उम्र में पार्किंसन की समस्या होने से मरीज के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पर लाचार हो जाता है। इस शोध से यह उम्मीद है जगी है कि भविष्य में पार्किंसन की ज्यादा संभावना वाले मरीजों की पहचान हो सकेगी और इलाज के जरिए उन्हें इससे बचाया जा सकेगा।

ऐसे हुआ शोध-

शोध के वरिष्ठ लेखक क्लाइव ने बताया कि कम उम्र में पार्किंसन के मरीज बने लोगों की कोशिकाओं से विशेष स्टेम सेल तैयार किए। इन्हें इन्ड्यूस्ड प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स (आईपीएससी) नाम दिया गया। आईपीएससी इंसान के शरीर की हर तरह की कोशिकाएं तैयार कर सकता है। शोधकर्ताओं ने आईपीएससी की मदद से हर मरीज की डोपामाइन बनाने वाली तंत्रिकाएं तैयार की और फिर उनकी गाविधियों का विश्लेषण किया।

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बीमारी का कारण-

पार्किंसन की समस्या मस्तिष्क में डोपामाइन बनाने वाली तंत्रिकाओं के कमजोर पड़ने या खत्म होने से होती है। डोपामाइन शरीर की मांसपेशियों की गतिविधियों के बीच समन्वय बिठाता है। डोपामाइन की गैर-मौजूदगी में शरीर की गतविधियां कम हो जाती हैं, मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं और मरीज के लिए  शरीर का संतुलन बिठाना मुश्किल होता है। समय के साथ ये लक्षण और गंभीर होते जाते हैं। मुश्किल यह है कि पार्किंसन का अब तक कोई इलाज नहीं है।

खराब हो जाता है कोशिकाओं का कूड़ादान-

शोधकर्ताओं को मरीजों की डोपामाइन तंत्रिकाओं में दो मुख्य असामान्य लक्षण मिले। पहला, इनमें अल्फा-सिनूक्लेन प्रोटीन बड़ा मटर में मौजूद था , जो पार्किंसन के मरीजों का सामान्य लक्षण है।

दूसरा, इनमें लाइजोसोम भी ठीक से काम नहीं कर रहा था। लाइजोसोम कोशिकाओं के लिए कूड़ेदान की तरह होता है, जहां वे अपने प्रोटीन्स को छोड़ देती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि लाइजोसोम के ठीक से काम नहीं करने के कारण ही संभवता अल्फा-सिनूक्लेन प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।

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इलाज की उम्मीद भी जगी-

शोधकर्ताओं को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मान्यता प्राप्त एक दवा का पता चला जो अल्फा-सिनूक्लेन प्रोटीन की मात्रा को कम करने में कारगर है। पेपु-5 नाम की यह दवा त्वचा कैंसर की शुरूआती अवस्था में इस्तेमाल होती है। शोधकर्ता पता कर रहे हैं कि इसे मस्तिष्क तक पहुंचाने का क्या तरीका हो सकता है।

 

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